अब इंडिया गेट पर नहीं होंगे अमर जवान ज्योति के दीदार, यहां जानिए पूरा विवाद?
बदल रही हैं परमपराएं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र की सरकार देश में उन पुरानी परामपराओं में बदलाव ला रही हैं जो कहीं न कहीं अग्रेजी शासन से जुड़ी हैं, देश की राजधानी में इंडियागेट पर दशकों से जल रही अमर ज्योति अब नेशनल वॉर मेमोरियल के लौ में मिला दी गई हैं, कहा जाता रहा है कि अमर जवान ज्योति अमर शहीदों के लिए तो जलाई गई थी, लेकिन इंडिया गेट पर अनजान रायफल और अनजान सैन्य टोपी के साथ ये लौ उन लोगों के लिए भी जल रही थी जो भारत को गुलाम बनाए आए थे. ऐसे में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में वीर शहीदों को याद कर उनके सम्मान में राष्ट्रीय युद्ध समारक बनाया गया जिसे नेशनल वॉर मेमोरियल कहते हैं.
आज तक कैसी रही थी परमपराएं
आजादी का अमृत महोत्सव 15 अगस्त हो या 26 जनवरी, देश के प्रधानमंत्री और तीनों सेनाओं के प्रमुख इंडिया गेट में जल रही अमर ज्योति को नमन कर शहीदों को श्रद्धांजलि देते थे, यहा दुनियां भर के देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ कई मेमहान आते रहे हैं, जो ब्रिटिश काल में बने इंडिया गेट को देखते आए हैं.
कैसे बदली परमपरा ?
साल 2019 में नेशनल वॉर मेमोरियल बनने के बाद यह प्रथा धीरे धीरे बदलने लगी । दशकों से इंडियागेट पर किया जा रहा शहीदों को नमन अब नेशनल वॉर मेमोरियल यानी राष्ट्रीय युद्ध समारक में किया जाने लगा । मोदी सरकार ने इस परंपरा को बदलकर तभी ये संकेत दे दिए थे कि अब देशभक्ति का प्रतीक इंडिया गेट नहीं बल्कि नेशनल वॉर मेमोरियल होगा। कहा जाता है कि नेशनल वॉर मेमोरियल की आधारशिला रखते वक्त ये तय हो गया था कि नेशनल वॉर मेमोरियल के अमर चक्र में अमर जवानों के लिए लौ जलेगी, लेकिन इंडिया गेट में जल रही मशाल बुझेगी नहीं, बल्कि उसका इस लौ में विलय होगा।
कब बना था “नेशनल वॉर मेमोरियल”
नेशनल वॉर मेमोरियल 2019 में बनकर तैयार हुआ, नेशनल वॉर मेमोरियल स्वतंत्र भारत में देश के लिए शहीद होने वाले मॉ भारती के वीर सैनिकों की याद में नई दिल्ली में ही इंडिया गेट के पास ही बनवाया गया । ये जनवरी 2019 में पूरा हुआ और 25 फरवरी 2019 को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया ।
क्या है नेशनल वॉर मेमोरियल की विशेषता
नेशनल वॉर मेमोरियल में बारत-चीन युद्ध, पाकिस्तान के साथ युद्ध 1961 में हुए गोवा युद्ध, श्रीलंका में चलाए गए ऑपरेशन पावन और जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए विभिन्न ऑपरेशन के वीर सैनिकों के नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं। नेशनल वॉर मेमोरियल में चार चक्र हैं। जिनमें अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग और सुरक्षा चक्र शामिल हैं। नेशनल वॉर मेमोरियल में 25 हजार 9 सौ 42 शहीद वीर जवानों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने आजादी के बाद देश के लिए युद्ध और संघर्षों में अपनी जान दी।
इंडिया गेट पर अब सुभाष चंद्र बोस की स्थापित होगी परंपरा
दिल्ली में इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति के नेशनल वॉर मेमोरियल में विलय के बीच देस के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर ऐलान किया है कि इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘ऐसे समय में जब पूरा देश नेताजी सुभाष बोस की 125वीं जयंती मनाने जा रहा है, मैं ये बताते हुए बहुत खुश हूं कि ग्रेनाइट से बनी उनकी एक भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर लगाई जाएगी। यह नेताजी के प्रति देश की कृतज्ञता का प्रतीक होगा।
Till the grand statue of Netaji Bose is completed, a hologram statue of his would be present at the same place. I will unveil the hologram statue on 23rd January, Netaji’s birth anniversary. pic.twitter.com/jsxFJwEkSJ
— Narendra Modi (@narendramodi) January 21, 2022
अमर जवान ज्योति
काले मार्बल के चबूतरे, उस पर संगीन युक्त एल1ए1 सेल्फ लोडिंग राइफल और उस पर रखे हेलमेट को शहीदों की अंतिम याद की तरह देखा जाता रहा है। यहां चार कलश हैं, इसमें चार ज्योतियां जलती रही हैं। सामान्य दिनों में एक और राष्ट्रीय पर्वों पर चारों ज्योतियां जलाई जाती रही हैं। पहले ज्योति लिक्विड पेट्रोलियम गैस से जलाई जाती थी। लेकिन बाद में पीएनजी फिर सीएनजी उपयोग होने लगी।
विवादों के बीच कहा सुनी
इधर विवादों के बीच जो निकल कर सामने आ रहा है उसमें अगर देखा जाए तो इंडिया गेट को ब्रिटिश भारत की ओर से लड़ते हुए शहीद हुए 90 हजार भारतीय सैनिकों की याद में अंग्रेजों ने 1931 में बनाया था। ये सैनिक फ्रांस, मेसोपोटामिया, पर्शिया, पूर्वी अफ्रीका, गैलिपोली, अफगानिस्तान, दुनिया के कई अन्य हिस्सों में अंग्रेजों के लिए लड़े थे। यहां 13 हजार शहीद सैनिकों के नामों का उल्लेख है। इंडिया गेट की अधाराशिला ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी। इसे एडविन लुटियन ने डिजाइन किया था। यहां भारत पर अग्रेजी शासक जार्ज पंचम की भी तस्वीर लगी थी. ऐसे में सवाल उठते रहे हैं कि आखिर कांग्रेस ने छह-सात दशक में शहीदों के सम्मान में स्थायी स्मारक क्यों नहीं बनाया. इंडिया गेट उपनिवेशवादी दौर की पहचान है। इंडिया गेट पर लिखे शहीदों के नाम स्मारक पर भी दर्ज हैं, इसलिए शहीदों को समर्पित ज्योति स्मारक पर जलनी चाहिए बीजेपी लगातार यहीं बात कह रही है
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