अस्थमा के मरीजों को क्यों होता है कम ब्रेन ट्यूमर का खतर…
Report By- Rj Amit Soni
नई दिल्ली- अस्थमा के मरीजों को ब्रेन ट्यूमर का खतरा कम क्यों होता है. अमेरिका के वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने हालिया अध्ययन में इस गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है. यह खोज अस्थमा और ब्रेन ट्यूमर का बेहतर इलाज खोजने में खासी मददगार साबित हो सकती है.
अस्थमा और ब्रेन ट्यूमर के बीच संबंध के संकेत 15 साल पहले एक वैश्विक महामारी को लेकर हुए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में मिले थे. इसके बाद 2015 में एक शोध अनुसार ब्रेन ट्यूमर के प्रति जेनेटिक रूप से संवेदनशील बच्चों में अस्थमा के मामले आम आबादी जितने नहीं मिलने का दावा किया गया था. लेकिन शोधकर्ताओं ने जब बच्चों में ब्रेन ट्यूमर पनपने का खतरा जाना तो इसके पीछे ऑप्टिक नर्व और मस्तिष्क में मौजूद टी-सेल व माइक्रोग्लिया जैसी प्रतिरोधक कोशिकाओं के बीच होने वाली क्रिया का हाथ मिला. लेकिन अस्थमा भी टी-सेल की अतिसक्रियता से होने वाला श्वास रोग है जबकि ये माना गया कि इसका ब्रेन ट्यूमर के खतरे से सीधा संबंध हो सकता है.
अस्थमा और ब्रेन ट्यूमर के बीच के संबंधों से पर्दा उठाने के लिए डेविड गटमैन और उनके साथियों ने चूहों पर अध्ययन किया. उन्होंने चूहों की जेनेटिक संरचना में कुछ बदलाव किया, ताकि वे ब्रेन ट्यूमर के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाएं. इसके बाद चूहों को अस्थमा के जीवाणुओं के संपर्क में लाया, जिससे उनमें श्वास संबंधी जटिलताएं पैदा हो सकें. हालांकि चार से छह हफ्ते बाद चूहों में ब्रेन ट्यूमर का विकास देखने को नहीं मिला. इसकी वजह टी-कोशिकाओं में ‘डेकोरीन’ नाम के प्रोटीन का ज्यादा मात्रा में पैदा होना था.
गटमैन का कहना है अस्थमा की एक बड़ी वजह टी-सेल में ‘डेकोरीन’ का ज्यादा मात्रा में उत्पादन होना है. यह प्रोटीन भले ही फेफड़ों की सेहत के लिए ठीक न हो, पर मस्तिष्क में ट्यूमर और कैंसर के खतरे में कमी लाने में इसकी अहम भूमिका पाई गई है. गटमैन ने उम्मीद जताई कि ताजा खोज ‘डेकोरीन’ के उत्पादन पर नजर रख ब्रेन ट्यूमर और अस्थमा, दोनों के इलाज के रास्ते खोलेगी. अध्ययन के नतीजे ‘नेचर कम्युनिकेशन’ जर्नल के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं.