अंबेडकरनगर: श्राद्ध में श्रृद्धापूर्वक पितरों को जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर विधि द्वारा ब्राह्मणों को दी जाती है… इस सबका उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है… यह एक ऐसा माध्यम जिससे पितरों को तृप्ति के लिए भोजन दिया जाता है… पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा माना जाता है…श्राद्ध करने का सभी का अपना एक समय होता है… श्राद्ध मृत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक श्राद्ध देने की विधि है… वही प्रसिद्ध ज्योतिचार्य पं. राकेश कुमार मिश्रा ने बताया कि जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो यानि अगर किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण किसी की मौत हुई है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन होता है… जो व्यक्ति अपने जीवन काल में साधु और संन्यासी रहा हो तो उनका श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है… हर साल पितरों की शांति और तर्पण करने के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में किया जाता है।पूर्वजों का तपर्ण करना हिन्दू धर्म में बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है… पुण्य के साथ तर्पण हिन्दू धर्म में बहुत अहम काम माना जाता है… हिन्दू मान्यता के हिसाब से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है… मान्यत है कि अगर मृत मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना हो पाए तो उसे पृथ्वी लोक से मुक्ति नहीं मिलती यानी उसे मोक्ष प्राप्त नहीं होता…
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